पितृ पक्ष 2024: 17 सितंबर से प्रारंभ : जाने तिथि, महत्व और श्राद्ध के प्रकार
तिथियाँ और समय
पितृ पक्ष 2024 में 17 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा। यह समय श्राद्ध कर्म के लिए समर्पित होता है, जब हम अपने पूर्वजों को तर्पण और पिंडदान देकर सम्मानित करते हैं। इस अवधि में हर दिन की तिथि अलग-अलग पूर्वजों के लिए निर्धारित होती है, जिसे श्राद्ध तिथि कहा जाता है। उदाहरण के लिए, अमावस्या का श्राद्ध सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, जो सभी पितरों के लिए होता है।
पितृ पक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए होता है। माना जाता है कि पितर (पूर्वज) इस दौरान पृथ्वी पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से तृप्त होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध कर्म करने से वंशजों को सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और सफलता मिलती है, साथ ही पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
श्राद्ध के प्रकार
पितृ पक्ष में श्राद्ध के कई प्रकार होते हैं, जो तिथियों और पारिवारिक संबंधों के आधार पर अलग-अलग होते हैं। कुछ मुख्य प्रकार के श्राद्ध हैं:
1. पूर्ण श्राद्ध: यह उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि हमें ज्ञात नहीं होती। इस श्राद्ध को 'सर्व पितृ अमावस्या' के दिन किया जाता है, जो सभी पितरों के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
2. कुंड श्राद्ध: यह उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, जैसे दुर्घटना, युद्ध या अन्य किसी अप्राकृतिक कारण से। कुंड श्राद्ध का उद्देश्य उनकी आत्मा की शांति के लिए होता है।
3. एकोदिष्ट श्राद्ध: यह श्राद्ध खासतौर पर किसी एक पूर्वज के लिए किया जाता है। यह तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति के परिवार में किसी की हाल ही में मृत्यु हुई हो और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना आवश्यक हो।
4. त्रिपिंडी श्राद्ध: यह श्राद्ध तीन पीढ़ियों के पूर्वजों के लिए किया जाता है। इसमें तीन पिंड बनाए जाते हैं और उन पिंडों को पितरों की आत्मा को समर्पित किया जाता है।
5. विधवा श्राद्ध: यह उन महिलाओं के लिए किया जाता है जिनका विवाह हुआ हो और वे विधवा हो गई हों। इस श्राद्ध का उद्देश्य उनकी आत्मा की शांति के लिए होता है।
श्राद्ध कर्म कैसे किया जाता है?
श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों को भोजन कराना, पिंडदान, तर्पण और दान शामिल होते हैं। भोजन में विशेष रूप से खीर, पूड़ी, और मौसमी फल दिए जाते हैं। इसके बाद ब्राह्मणों को वस्त्र, अन्न, और दक्षिणा दान दी जाती है। श्राद्ध स्थल पर पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है, और विधिपूर्वक मंत्रों का उच्चारण कर पिंडदान किया जाता है।
निष्कर्ष
पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करना न केवल हमारे पूर्वजों को सम्मान देने का तरीका है, बल्कि यह हमारे जीवन में शांति, समृद्धि और संतुलन लाने का भी एक आध्यात्मिक मार्ग है। यह परंपरा हमें अपने पूर्वजों से जोड़े रखती है और उनकी आत्मा की शांति के लिए किए गए कर्म से हमें उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
क्यों हुआ ? 17 सितंबर से शुरू जाने .....
पितृ पक्ष का प्रारंभ आज यानि 17 सितंबर मंगलवार से हो रहा है या फिर कल 18 सितंबर बुधवार से? यह सवाल काफी लोगों के मन में है क्योंकि सबसे बड़ी उलझन तिथि के कारण हो रही है. कई जगहों पर बताया गया है कि 17 सितंबर से पितृ पक्ष पक्ष शुरू हो रहा है क्योंकि भाद्रपद माह की पूर्णिमा की श्राद्ध तिथि आज है. लेकिन कई जगहों पर यह कहा जा रहा है कि पितृ पक्ष का प्रारंभ आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से होता है, इसलिए इसकी शुरूआत कल 18 सितंबर से होगी.
Article by Suraj sen
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