छत्तीसगढ़ से ब्युरो रिपोर्ट रोशन कुमार सोनी

बिलासपुर परियोजना में 100 करोड़ रुपये मुआवजा दिए जाने के मामले में हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपना फैसला सुना दिया है. जिसमें कोर्ट ने अधिकारियों और भू-स्वामियों के बीच हुई मिलीभगत से ज्यादा मुआवजा देना पाया और याचिका को खारिज कर दिया.

इससे पहले कलेक्टर ने एफआईआर दर्ज कराई थी. मई में सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपने आदेश के फैसले को सुरक्षित रख लिया था. जिसमें आज फैसला आ गया है. कोर्ट ने अपने आदेश में सिंगल बेंच के आदेश को बरकरार रखते हुए भू-स्वामियों को शासन से हड़पे गए रकम वापसी का आदेश दिया है.
100 करोड़ का मुआवजा
बता दें कि बस्तर को रायपुर से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण रेल लाइन रावघाट परियोजना का मामला घोटाले के शोर के बीच हाईकोर्ट पहुंचा. जहां एक तरफ बस्तर रेलवे प्राइवेट लिमिटेड ने हाईकोर्ट में प्रभावित किसानों को दी गई ज्यादा मुआवजा को वापस दिलाने की मांग की थी. वहीं किसानों ने उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की मांग की थी.
हाईकोर्ट में दायर दोनों पक्षों ने याचिका में बताया कि रावघाट परियोजना के बीच में आ रहे बस्तर के ग्राम पल्ली में एक स्टेशन बनना है. यहां पर बली नागवंशी की 2.5 हेक्टेयर और नीलिमा बेलसरिया की 1.5 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की गई. इसके बदले उन्हें 100 करोड़ रुपए मुआवजा दिया गया.

मिलीभगत का आरोप
बहस के दौरान बस्तर रेलवे प्राइवेट लिमिटेड का कहना था कि ग्रामीण क्षेत्र की जमीन का अतिरिक्त मुआवजा दिया गया है. राजस्व विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर गड़बड़ी की गई है. सरकारी नोटिफिकेशन में यह जमीन ग्रामीण क्षेत्र में ही दिख रही है. वहीं किसानों का कहना था कि उनको सही मुआवजा दिया गया है. उनकी जमीन नगर निगम सीमा से लगी हुई है. जिसका कृषि भूमि से आवासीय उपयोग के लिए परिवर्तन करा लिया गया था.

इसके कारण उनकी जमीन की कीमत दूसरे किसानों से ज्यादा हो गई. मामले को सुनने के बाद डिवीजन बेंच ने फैसले को रिजर्व कर लिया था. आज आए फैसले में कोर्ट ने भू-स्वामियों की याचिका खारिज कर दी. वहीं इसी मामले से संबंधित एक याचिका में इरकॉन के दो अधिकारी सुरेश बी. मताली और एवीआर मूर्ति को राहत दिया है. उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त कर दिया है.

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