*हैप्पी मदर्स डे ममता मेरी मां*
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जब आंख खुली तो अम्मा की,
गोदी का एक सहारा था।
उसका नन्हा सा-आंचल।
 मुझको भूमंडल से प्यारा था!

उसके चेहरे की झलक देख,
चेहरा फूलों सा-खिलता था।
उसके स्तन की एक बूंद से, मुझको जीवन मिलता था!

हाथों से बालों को नोचा,
पैरों से खूब प्रहार किया।
फिर भी उस मां ने पुचकारा,
हमको जी भर के प्यार किया!

मैं उसका राजा बेटा था,
वह आंख का तारा कहती थी।
मैं बनू बुढ़ापे में उसका,
बस एक सहारा कहती थी!

उंगली पकड़ चलाया था,
पढ़ने विद्यालय भेजा था।
मेरी नादानी को भी निज,
अंतर में सदा सहेजा था!

मेरे सारे प्रश्नों का वो,
फौरन जवाब बन जाती थी।
मेरी राहों के कांटे चुन,
वो खुद गुलाब बन जाती थी!

मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से,
इक रोग प्यार का ले आया।
जिस दिल में मां की मूरत थी,
वो रामकली को दे आया!

शादी की' पति से बाप बना,
अपने रिश्तो में झूल गया।
अब करवाचौथ मनाता हूं,
मां की *ममता* को भूल गया!

हम भूल गए उसकी *ममता*,
मेरे जीवन की थाती थी।
हम भूल गए अपना जीवन,
वो अमृत वाली छाती थी!

हम भूल गए वो खुद भूखी,
रह करके हमें खिलाती थी।
हमको सूखा बिस्तर देकर,
खुद गीले में सो जाती थी!

हम भूल गए उसने ही,
होठों को भाषा सिखलाई थी।
मेरी नींदों के लिए रात भर,
उसने ही लोरी गई थी!

हम भूल गए हर गलती पर,
उसने डांटा समझाया था।
बच जाऊं बुरी नजर से हम,
काला टीका सदा लगाया था!

हम बड़े हुए तो *ममता* वाले,
सारे बंधन तोड़ आए।
बंगले में कुत्ते पाल लिए,
मां को बृद्धाश्रम छोड़ आए!

उसके सपनों का महत्व गिराकर,
कंकर कंकर बीन लिए।
खुदगर्जी में उसके सुहाग के,
आभूषण तक छीन लिए!

हम मां को घर के बंटवारे की,
अभिलाषा तक ले आए।
उसको पावन मंदिर से,
गाली की भाषा तक ले आए!

मां की *ममता* को देख मौत,
भी आगे से हट जाती है।
अगर मां अपमानित होती,
धरती की छाती फट जाती है!

घर को पूरा जीवन देकर,
बेचारी मां क्या पाती है।
रुखा सुखा खा लेती है,
पानी पीकर सो जाती है!

जो मां जैसी देवी घर के,
मंदिर में नहीं रख सकते हैं।
बो लाखो पुण्य भले कर ले,
इंसान नहीं बन सकते हैं!

मां जिसको भी जल दे दे,
वह पौधा संदल बन जाता है।
मां के चरणों को छूकर,
पानी गंगाजल बन जाता है!

मां के आंचल नै युगो युगो से,
भगवानों को पाला है।
मां के चरणों में जन्नत है,
गिरिजाघर और शिवाला है!

मां कबिरा की साखी जैसी,
मां तुलसी की चौपाई है।
मीराबाई की पदावली,
खुसरो की अमर दवाई है!

मां आंगन की तुलसी जैसी,
पावन बरगद की छाया है।
मां वेद ऋचाओं की गरिमा,
मां महाकाव्य की काया है!

मां मानसरोवर *ममता* का,
मां गोमुख की ऊंचाई है।
मां परिवारों का संगम है,
मां रिश्तों की गहराई है!

मां हरी दूब है धरती की,
मां केसर वाली क्यारी है।
मां की उपमा केवल मां है,
मां हर घर की फुलवारी है!

सातों सुर नर्तन करते,
जब कोई मां लोरी गाती है।
मां जिस रोटी को छू लेती है,
वो प्रसाद बन जाती है!

मां हंसती है तो धरती का,
जर्रा जर्रा मुस्काता है।
देखो तो दूर छितिज अम्बर,
धरती को शीश झुकाता है!

माना मेरे घर की दीवारों में,
चंदा - सी मूरत है।
पर मेरे मन के मंदिर में,
बस केवल मां की मूरत है!

मां सरस्वती लक्ष्मी दुर्गा,
अनुसुइया मरियम सीता है।
मां पवनतया में,
रामचरितमानस भागवत गीता है!

अम्मा तेरी हर बात मुझे,
वरदान से बढ़कर लगती है।
हे मां तेरी सूरत मुझको,
भगवान से बढ़कर लगती है!

सारे तीरथ के पुण्य जहां,
मैं उन चरणों में लेटा हूं।
जिनके कोई संतान नहीं,
मैं उन मांओ का बेटा हूं!

हर घर में मां की पूजा हो,
ऐसा संकल्प उठाता हूं।
मैं दुनिया की हर मां के,
 चरणों में ये शीश झुकाता हूं!

*मैं दुनिया की हर मां के चरणों में ये शीश झुकाता हूं।।*

   हृदेश कुमार छतरपुर
         *पत्रकार*

      *ब्लॉक अध्यक्ष*
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार
सुरक्षा संगठन नौगांव इकाई।
   👏👏👏👏👏

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