छत्तीसगढ़ से ब्युरो रिपोर्ट रोशन कुमार सोनी
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंत्रियों का कद तो पद देकर तय किया गया, लेकिन विभाग वितरण में समन्वय व नतीजे की चिंता साफ नजर आ रही है। कद की बात करें तो मुख्यमंत्री के बाद दोनों उप मुख्यमंत्री आते हैं। पर, दोनों ही उप मुख्यमंत्री को लेकर पर्दे के पीछे कई तरह के सवाल उठने शुरू हो गए थे। समझा जा रहा है कि विभागों के वितरण में उन सवालों को हल करने की कोशिश की गई है और सियासी नजरिए से ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाने वाले कई बड़े विभागों की जिम्मेदारी अन्य वरिष्ठ मंत्रियों को दे दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री की कैबिनेट में दो उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक शामिल किए गए। भाजपा में केशव विरोधी तबका विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाने पर अंदरखाने नुक्ताचीनी कर रहा था। इसी तरह ब्रजेश पाठक को भी उप मुख्यमंत्री बनाना, कई लोगों को नहीं सुहा रहा। पर्दे के पीछे पाठक की पुरानी बसपाई पृष्ठभूमि को आगे किया जा रहा है। ब्रजेश 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा से भाजपा में आए थे। पर, दोनों को ही उपमुख्यमंत्री बनाने के ठोस वजह रही।
चुनाव हारने की बात अपनी जगह है, लेकिन केशव यूपी में भाजपा के एकलौते पिछड़ा चेहरा हैं, जिनके नाम पर भीड़ जुटती है। इसी तरह ब्रजेश पाठक पिछले पांच वर्ष में अपनी सक्रियता से ब्राह्मण चेहरे के रूप में छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। ऐसे में दोनों ही नेताओं की उपमुख्यमंत्री के पद पर ताजपोशी चौंकाने वाली नहीं रही।
मंत्रिमंडल के एलान के काफी पहले से ही हारने के बावजूद केशव और ब्राह्मण चेहरे के रूप में पाठक को उपमुख्यमंत्री बनाने का अनुमान लोगों की जुबान पर था। मगर विभाग वितरण में पार्टी के भीतर से उठ रहे सवालों को ठंडा करने की कोशिश नजर आ रही है। मसलन, केशव को लोक निर्माण जैसा महकमा दोबारा नहीं दिया गया।
यह एकमात्र विभाग है, जिससे सीधे तौर पर सभी विधायक जुड़े रहते हैं। दूसरा, 17वीं विधानसभा के ज्यादातर विधायक लोक निर्माण विभाग में उनके काम से संतुष्ट थे। केशव को लोक निर्माण से थोड़ा कम महत्व का माने जाने वाले ग्राम्य विकास विभाग की जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि यह विभाग ग्रामीण आबादी की जीवन व जीविका से सीधे तौर पर जुड़ा है। पीएम सड़क योजना जैसी बड़ी योजना साथ में है। वह अपनी सक्रियता से इस विभाग में अलग छाप छोड़ सकते हैं।
ब्रजेश पाठक ने कोविड महामारी के दौरान लखनऊ में महामारी से प्रभावित लोगों की मदद में अलग पहचान बनाई। उन्हें चिकित्सा स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा जैसा महकमा एक साथ देकर उनके पद के साथ कद को भी तवज्जो दी गई है। पर पीडब्ल्यूडी, नगर विकास या ऊर्जा जैसा बड़ा महकमा न देकर अंदरखाने की आवाज जैसे सुन ली गई है।
विभाग वितरण में तमाम पुराने मंत्रियों को पुराने विभाग देकर शुरू हुए कार्यों को उसी रफ्तार में आगे बढ़ाने का संदेश दिया गया है। तो कई नए मंत्रियों को अलग-अलग दृष्टि से विभाग देकर उनकी जवाबदेही तय करने की कोशिश की गई है। मसलन, उच्च शिक्षा नए मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, बेसिक शिक्षा संदीप सिंह व माध्यमिक शिक्षा गुलाब देबी जैसे अलग-अलग मंत्रियों के पास है।
जबकि पशुधन, दुग्ध विकास के साथ अल्पसंख्यक कल्याण व मुस्लिम वक्फ जैसा महकमा वरिष्ठ मंत्री धर्मपाल सिंह को दिया गया है। पशुधन विभाग की ही छुट्टा पशुओं की समस्या के समाधान की जिम्मेदारी है। इसी तरह आईपीएस की नौकरी छोड़ राजनीति में आए असीम अरुण को समाज कल्याण जैसा बड़ा महकमा दिया गया है। इस विभाग से अनुसूचित जातियों के लाखों बच्चों की बेहतरी का भविष्य जुड़ा है।
विभाग बंटवारे में लोक निर्माण विभाग का आवंटन सबसे चौंकाने वाला माना जा रहा है। यह जिम्मेदारी 18 वीं विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस से भाजपा में आए जितिन प्रसाद को दी गई है। विभाग की जानकारी उजागर होने के बाद भाजपा के कई विधायकों ने फोन कर इतना महत्वपूर्ण महकमा जितिन को दिए जाने पर हैरानी जताई। विधायकों का कहना है कि जितिन दूसरी पार्टी से आए हैं। अब पार्टी के विधायक उनकी दरबार सजाएंगे। हालांकि जितिन केंद्र में मंत्री रहे हैं और राज्य सरकार में भी मंत्री का अनुभव है। वह मृदुभाषी हैं व सहजता से मिलते-जुलते हैं। दूसरा सामाजिक समीकरण में ब्राह्मण चेहरा भी हैं और मुख्यमंत्री से उनके सहज संबंध भी हैं। बताया जा रहा है कि सीएम से सहज संबंध होना जितिन के लिए लाभकारी साबित हुआ। पर, वह किस तरह सभी विधायकों को संतुष्ट कर पाएंगे, इस पर सबकी नजर होगी।
नौकरशाह से राजनेता बने अरविंद शर्मा को सरकार में हिस्सेदारी के लिए थोड़ा इंतजार जरूर करना पड़ा। पर, उनका कद किसी उप मुख्यमंत्री से कम नहीं रह गया है। उन्हें नगर विकास, शहरी समग्र विकास, नगरीय रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन विभाग के साथ ऊर्जा व अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत जैसे बड़े पावर वाले विभाग दिए गए हैं।
पिछली कैबिनेट में महेंद्र सिंह जलशक्ति व बाढ़ नियंत्रण मंत्री थे। महेंद्र की गिनती मुख्यमंत्री के विश्वस्त चुनिंदा मंत्रियों में होती थी। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह भी मुख्यमंत्री के गुडबुक में माने जाते हैं। स्वतंत्रदेव को जलशक्ति व बाढ़ नियंत्रण जैसा भारी भरकम महकमा देकर सरकार में उनके महत्व को सहज से सामने ला दिया गया है।
सरकार के वरिष्ठतम मंत्रियों में शामिल सुरेश कुमार खन्ना व सूर्य प्रताप शाही और भूपेंद्र सिंह चौधरी के पिछले मंत्रिमंडल के विभाग बनाए रखकर उनके कद व काडर का महत्व बरकरार रखा गया है। बेबीरानी मौर्य पूर्व राज्यपाल रही हैं। पार्टी ने उन्हें जाटव चेहरे के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल किया है। ऐसे में बड़े विभागों में शामिल बाल विकास एवं पुष्टाहार तथा महिला कल्याण जैसा महकमा उन्हें दिया गया है। पिछली सरकार में ये महकमे पूरे समय स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्रियों के पास थे।
बेबीरानी इन विभागों की कैबिनेट मंत्री के रूप में सर्वेसर्वा हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शामिल लक्ष्मी नारायण चौधरी का कद बढ़ाया गया है। वह पश्चिम में जाट चेहरे के रूप में उभारे गए हैं और उन्हें गन्ना विकास व चीनी मिलें जैसा बड़ा महकमा दिया गया है।
इसी तरह नंद गोपाल गुप्ता नंदी से पिछली सरकार में दिए गए नागरिक उड्डयन जैसा बड़ा विभाग ले लिया गया तो उसी तरह महत्वपूर्ण औद्योगिक विकास, निर्यात प्रोत्साहन, एनआरआई व निवेश प्रोत्साहन जैसे विभाग देकर उनका भी महत्व बनाए रखा गया है। दूसरी बार मंत्री बने व राजभर चेहरे अनिल राजभर को श्रम एवं सेवायोजना जैसा अहम महकमा दिया गया है। संगठन से आए जेपीएस राठौर को सहकारिता और दयाशंकर सिंह को परिवहन जैसा महकमा देकर महत्व बनाए रखा गया है।
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