गोबर के कंडो की होलिका दहन कर पर्यावरण को संरक्षित करने का संदेश
12 साल पहले गोबर के कंडो की होलिका दहन से जिले के अन्य जगह पर बन गई कंडो की होलिका दहन की परंपरा
*देश भर में गोबर के कंडो की होलिका दहन करने की परंपरा बन गई तो लाखों पेड़ कटने से बचेंगे और पशु पालन करने वालों को मिलेगा बड़ा रोजगार-अमित वर्मा*
देवरी- भारत देश मे अनेकों पर्व मनाए जाते हैं जिनमे से एक प्रमुख पर्व होली का है। भारत की संस्कृति में पर्व लोंगों की ज़िंदगी के हिस्सा है और इन पर्व में कोई ना कोई रहस्य और मतलब होता है इन पर्व से कुछ न कुछ संदेश दिया जाता है। भारत की धरती पर अनेकों रूप में धरती में आकर भगवान ने लीलाओं को रचा उनकी लीलाओं को धरती के लोगों ने उनके लिए तरह-तरह की परवो की परंपरा बनाई जिनमें से होली के पर्व की परंपरा भक्त पहलाद से आरंभ हुई। देश में मनाए जाने वाले अनेकों प्रकार के पर्व में भगवान की लीलाओं से संबंधित है। पहेले के समय में जंगल पर्याप्त मात्रा में थे तब लकड़ी की होलिका दहन की जाती थी। वर्तमान परिवेश में जंगल नाममात्र के बचे है। होलिका दहन में लकड़ी के उपयोग से पेड़ काटे जाते हैं जिससे पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है क्योंकि एक पौधे को पेड़ बनने में 15 से 20 साल लगते हैं और एक झटके में पेड़ को काट दिया जाता है करेली के पत्रकार अमित वर्मा ने 12 साल पहले यह सोचा कि त्यौहार की परंपरा भी बनी रहे और पर्यावरण भी बचा रहे और लोगों का रोजगार भी बन जाए। गोबर से बने कंडो की होली का रखने का विचार बनाकर हनुमान वार्ड में गोबर के कंडे की होली रख दी इस होली में मात्र एक लकड़ी का उपयोग किया गया क्योंकि होलिका दहन का महत्व लकड़ी से है। कंडों की होली से त्यौहार भी मन गया और संस्कृति भी कायम बनी रही। अगर इस तरह से समूचे देश में गोबर से बने कंडो की होली रखने लगी जाए तो पशु पालन करने वालों को कंडो का बड़ा रोजगार बन जाएगा। 12 साल पहले हनुमान वार्ड में पहली कंडो की होली रखने पर यह होली मीडिया की सुर्खियों में चर्चा का विषय रही उसके बाद से जिले में बहुत सी जगह पर कंडो की होलिका दहन करने का चलन बन गया। त्योहार हमारी संस्कृति है इनको मनाना चाहिए लेकिन थोड़ा सा तरीका बदल कर त्योहार मनाने की परंपरा बना लेना चाहिए जिससे पर्यावरण भी सुरक्षित होगा और लोगों को रोजगार भी बनेगा जहां जहां होलिका दहन होता है उन सभी को कंडे की होली दहन करके पर्यावरण को संरक्षित करना चाहिए। लकड़ी की होलिका दहन करने से ज्यादा कंडो की होली दहन करने में खूबसूरत दिखाई पड़ती है। होलिका का महत्व दहन करने से है चाहे लकड़ी से दहन करो चाहे कंडो से दहन करो संस्कृति बनी रहेगी। बच्चे होली रखते हैं तो उनमें समझ नहीं होती लेकिन मैंने देखा है जो बड़े हैं वह भी लकड़ी की होलिका रखते हैं ये लोग समझदारी का परिचय नहीं देते और अज्ञानता व हटधर्मी के कारण लाखों कुंटल लकड़ी दहन कर देते हैं अगर यह लोग समझदारी दिखाने लगे तो तरीका बदलने से त्यौहार की परंपरा भी बनी रहेगी और और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होगा तथा पशु पालने वालों को रोजगार भी बन जाएगा। भारत देश में होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो विश्वभर में मनाया जाने लगा है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं।
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