छत्तीसगढ़ से ब्युरो रिपोर्ट रोशन कुमार सोनी

खरसिया। शासन द्वारा अवैध रेत उत्खनन पर नजरें ततेरते ही खनिज राजस्व एवं पुलिस विभाग ने कार्रवाईयों का सिलसिला शुरू कर दिया। ऐसा कोई भी दिन नहीं रहा जब अंचल में रेत माफियाओं पर कार्रवाई ना हो रही हो। परंतु यह कार्रवाई अपने वाहनों की किस्त के बोझ तले दबे छोटे-मोटे लोगों तक ही सीमित है। वहीं रेत माफियाओं को इन बंदिशों से सकारात्मक ऊर्जा मिली है।

अंचल में रेत की जो ट्रिप 800 रूपए में आसानी से उपलब्ध हो जाती थी, वह अब 2500 से 3000 रुपए के आंकड़े को छू रही है। वहीं प्रधानमंत्री आवास बनवा रहे गरीबों तथा छोटे ठेकेदारों के निर्माण कार्य को प्रभावित कर रही है। जबकि अंचल में रेलवे कॉलोनी रेलवे लाइन तथा सड़क आदि अन्य सरकारी कार्य भी संपादित हो रहे हैं, जो रोके नहीं जा सकते। ऐसे में रेत माफियाओं की बल्ले-बल्ले हो गई है।

▪️ रेत घाट की स्वीकृति ही नहीं, सब तरफ है झोलझाल

रायगढ़ जिले में पिछले 3 वर्षों में 34 रेत घाटों की नीलामी हुई है। जिसमें सारंगढ़ से 2, घरघोड़ा से 3, धर्मजयगढ़ से 2, तमनार से 5, पुसौर से 2, बरमकेला से 1, खरसिया से 9 और रायगढ़ से 10 रेत खदानों को नीलामी के जरिए निजी कारोबारियों को आबंटित किया तो गया, वहीं नये पर्यावरणीय नियमों के तहत रेत घाटों का निर्धारण करते हुए अनुमति हेतु फाइल को रायपुर भी भेजा गया। परंतु 34 में से सिर्फ 10 ही खदानों को अनुमति मिली। जिसमें खरसिया के एक भी रेत घाट को अनुमति अब तक नहीं मिल पाई है। जबकि हर दिन खरसिया विकासखंड से सैकड़ों ट्रिप रेत का उत्खनन किया जा रहा है। अब समझ में यह नहीं आ रहा कि अवैध तो पहले भी किया जा रहा था, फिर कार्रवाई यहां पहले क्यों नहीं होती थी? वहीं अब भी बड़े रेत माफियाओं पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? अंचल में लगातार हो रहे निर्माण कार्य बता रहे हैं कि इन्हें रेत मुहैया तो जरूर करवाई जा रही है, तो फिर यह रेत आखिर कहां से आ रही है? जबकि रेत माफियाओं पर कार्रवाई भी हो रही है।

▪️ आंख झपकते ही रेत घाटों पर टूट पड़ते हैं माफिया

बताया जा रहा है कि प्रशासन की सख्ती से कोई भी रेत घाट नहीं छूटा हुआ। प्रत्येक रेत घाट पर प्रशासन की तीसरी नजर टिकी हुई है। परंतु घात लगाकर बैठे रेत माफिया प्रशासनिक आंख झपकते ही रेत घाटों पर टूट पड़ते हैं और रातों-रात कई ट्रिप रेत निकालकर 4 गुने भाव में जरूरतमंदों के दरवाजे पर पटक देते हैं। वहीं यह भी सुना जा रहा है कि इन रेत माफियाओं को प्रशासनिक खौफ़ इसलिए भी नहीं रहता कि यह ना सिर्फ शासन-प्रशासन की आंखों में धूल झोंकने के आदी हो चुके हैं, वहीं बहुत कुछ सेटिंग का मामला भी बताया जा रहा है। रेत की उपलब्धता से यह स्पष्ट हो रहा है कि कहीं ना कहीं मिलीभगत की गुंजाइश भी ज़रुर है।

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