//संवाददाता सतीश कुमार रजक//

प्राकृतिक और राजनैतिक दुर्दशा का शिकार बुंदेलखंड:- रूपेश जैन

//रूपेश जैन//
युवा पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता

लेख:- हम खुद को समझ ही नहीं पाए या आपने हमें समझा ही नहीं...यह असमंजस की घड़ी. आखिर! क्यों है खड़ी?.... चाहे आप भगवान हो यह फिर हमारी लोकतांत्रिक सरकार।
             इतिहास बहुत पुराना है. परंतु बीता हुआ अतीत हमें बहुत कुछ सिखलाता है लेकिन यह बदलता समय है जनाब. जो अपने बदलते स्वरूप को बताता है। 
दुनिया परिवर्तनशील है. परिवर्तित दुनिया में समय का पहिया लगातार चल रहा है जिसमें विकास का भी पहिया उसके साथ घूम रहा है परंतु वह विकास का पहिया भारत में कहीं-कहीं घूमता हुआ नजर आता है तो कहीं विकास का पहिया ही गुम हो गया है। 
          हालांकि यह कोई अतिशयोक्ति नहीं और ना ही कोई व्यंग है परंतु यह भारत है साहब! हमारे इस देश की यही हकीकत है। 
         हाल में भारत आजादी के अमृत महोत्सव की 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है. आजादी के पश्चात ही सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शिक्षा, स्वास्थ्य,समानता जैसे मुद्दे गत समय में हुए तमाम चुनावों के दौरान अनेक हुक्मरानों के लिए सत्ता का प्रमुख विषय बने रहे हैं तथा यह भी कोई झूठ नहीं कि इन मुद्दों ने कई सत्ताओं को बना दिया तो कई सत्ताधारियों को नीचे भी बैठा दिया।
                    लोकतांत्रिक प्रक्रिया में समय के साथ बदलती सरकारों ने इन मुद्दों पर ध्यान दिया और अपनी सत्ता की छाप बनाए रखने के लिए कार्य भी किया।
      अब हमने आजादी के पश्चात 75 साल का एक बड़ा पड़ाव पूर्ण कर लिया है परंतु विकास की छाप कहीं अधिक दिखाई देती है तो कहीं आज भी मंद गति से चल रही है।
               कछुआ रफ्तार से रेंगने वाला विकास आज भी बुंदेलखंड में अपनी मदमस्त चाल से रेंग रहा है. दुर्दशा तो बुंदेलखंड में अब इस तरह सामने आ रही है कि मानों जहां प्रकृति साथ नहीं देती तो लोकतांत्रिक सर्वशक्तिमान सरकारें भी पर्याप्त ध्यान नहीं देती हैं। 
          यही कारण है कि बुंदेलखंड मैं पर्यटन, खनिज संपदा, वन संपदा, साहित्य, कला एवं प्रतिभाओं के अनेक भंडार होने के बावजूद भी बुंदेलखंड के अनेक क्षेत्रों में रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे बुनियादी मुद्दों के साथ पलायन, बेमौसम बरसात, प्रलय, ओलावृष्टि तो कभी सूखा जैसी राक्षशी प्रवित्तियाँ अक्सर नजर आ जाती हैं।
 बुंदेलखंड के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले एक दुःखी किसान रामचरण ने गत दिवस हमसे कहा कि....
                       "खेती घाटे का सौदा बन गया है. कोरोना की मार अब भी जारी है. उम्र ढलने से स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता तो शहर जा नही सकते. महंगाई भी अब बढ़-चढ़ बोल रही है परंतु क्या करें साहब! सवाल तो अपने और परिवार के पेट का है।"
शायद ही है कि दु:खित किसान के द्वारा कही हुई यह बात आपके मन की भावनाओं को विचलित ना करें. परंतु दुर्दशा तो देखिए साहब ना तो राजनैतिक संरक्षण है और ना ही मौसम का साथ है बस यही हमारा बुंदेलखंड है।

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