छत्तीसगढ़ से ब्युरो रिपोर्ट रोशन कुमार सोनी
-------------------------------------------------फिजियोथेरेपी व स्पीच थेरेपी, से दिव्यांग बच्चों को मिल रहा एक नया जीवन व शिक्षा का समान अवसर
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रायगढ़, 2 दिसम्बर 2021/ दिव्यांग बच्चों का सामाजिक रूप से आत्मनिर्भर और स्वावलंबी होना नितांत आवश्यक है। दिव्यांग बच्चे शारीरिक या मानसिक नि:शक्तता और सामाजिक रवैये के कारण समाज की मुख्यधारा के साथ कदमताल करने में खुद को कमजोर महसूस करते हैं। किसी प्राकृतिक या अनुवांशिक कारण, असंतुलन, असाध्य बीमारी, दुर्घटना व शारीरिक मानसिक रूप से दिव्यांग बच्चों को सामान्य जीवन निर्वहन में तथा शिक्षा प्राप्त करने में कदम-कदम पर कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। दिव्यांग बच्चों को समावेशी गुणात्मक शिक्षा देने के रास्ते में बेशक चुनौतियां हों, लेकिन शासन की दिव्यांग बच्चों हेतु समावेशी शिक्षा अंतर्गत राजीव गांधी शिक्षा मिशन रायगढ़ समग्र शिक्षा के स्पीच थेरेपिस्ट व फिजियो थेरेपिस्ट द्वारा दी जा रही स्पीच थेरेपी व फिजियोथैरेपी से दिव्यांग बच्चों को एक नया जीवन मिल रहा तथा उनके मन में एक ऐसा नया आत्मविश्वास जगा है, जिससे वे शिक्षा के विशिष्ट अधिगम के नए आयामों को सीखने के काबिल बन रहे हैं।
दिव्यांग बच्चों की सतत् थेरेपी की है दुरुस्त व्यवस्था
राजीव गांधी शिक्षा मिशन रायगढ़ समग्र शिक्षा के तहत समावेशी शिक्षा अंतर्गत जिले के विभिन्न विकासखण्डों में स्पीच थेरेपी व फिजियोथेरेपी दी जा रही है। इस हेतु जिला स्तर पर एक फिजियो व एक स्पीच थैरेपिस्ट नियुक्त किए गए हैं। दोनों थेरेपिस्ट सभी 09 विकासखंडों में रोटेशन के आधार पर भ्रमण करते हैं। वहीं विकासखंड मुख्यालय में थेरेपी के लिए चिन्हित दिव्यांग बच्चों को एकत्रित करने के लिए विकासखंड में बीआरपी और सहायक अथवा अटेंडेंट अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
क्या कहते है आंकड़ें
डॉ.खुशबू साहू (एम पी टी आर्थो) बताती हैं कि अब तक रायगढ़ ब्लॉक के 122, तमनार के 20, घरघोड़ा के 33, बरमकेला के 10, सारंगढ़ के 17, लैलूंगा 14, पुसौर 34, खरसिया के 12 और धरमजयगढ़ के 50 दिव्यांग बच्चों सहित कुल 312 दिव्यांग बच्चे फिजियोथेरेपी से लाभान्वित हुए हैं। वहीं स्पीच थैरेपिस्ट प्रतिभा गवेल (वाणी एवं भाषा रोग विशेषज्ञ) का कहना है कि स्पीच थैरेपी से रायगढ़ के 128, बरमकेला के 13, धरमजयगढ़ के 76, घरघोड़ा के 28, खरसिया के 11, लैलूंगा के 25, सारंगढ़ के 19, तमनार के 21, पुसौर के 43, कुल 364 दिव्यांग बच्चे ऐसे बच्चे लाभान्वित हुए है। उल्लेखनीय है कि ऐसे दिव्यांग बच्चे जो सेरेब्रल पाल्सी, ऑटिज़्म,कंजेटियल डिफॉरमेटी जैसे कंजेटियल डिसलैक्सेशन ऑफ हिप, क्लब फुट, इक्वीनस फुट, स्पाइन डिफॉरमेटिस जैसे स्कोलियोसिस कायफॉसिस, मस्कुलर डायस्ट्रोफाइस, मेंटल रिटारडेशन विद लोको मोटर डिसेबिलिटी मल्टीपल डिसेबिलिटिस, श्रवण पाटीदार, मानसिक मंदता, मानसिक पक्षाघात, अपने उम्र से कम बोलने वाले, तुतलाने वाले, हकलाने वाले जैसी विभिन्न व्याधियों एवं विकलांगता से ग्रसित थे, उन्हें फिजियो थेरेपी व स्पीच थेरेपी ने एक नया जीवन और आत्मविश्वास मिल रहा है।
पालकों की भी की जाती है काउंसिल
इस दौरान दिव्यांग बच्चों के पालकों की भी काउंसलिंग कर उनके बच्चों की विकलांगता और बीमारी की स्थिति, भविष्य में सुधार व प्रगति तथा बच्चों के लिए डेली होम एक्सरसाइज सहित उन्हें क्या करना है और क्या नहीं, इस बारे में विस्तार से समझाया जाता है। साथ ही दिव्यांग बच्चों के डाइट, पोषण एवं उनकी हाइजीन के बारे में भी विस्तार से बच्चों एवं उनके पालकों को समझाया जाता है। बच्चों को उनकी जरूरत के अनुसार फिजियोथेरेपी व स्पीच थेरेपी प्रदान श्रवण बाधित बच्चों को श्रवण यंत्र प्रदान करते हुए, पालकों की काउंसलिंग करते हुए उन्हें इसके उपयोग के बारे में विस्तार से समझाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि शासन की समावेशी शिक्षा अंतर्गत दिव्यांग बच्चों को दी जा रही फिजियो थेरेपी व स्पीच थेरेपी की बदौलत ही बच्चों की विकलांगता की स्थिति में काफी सुधार दिखाई दे रहा है।
जिला स्तर पर सतत की जाती है मॉनिटरिंग
विकासखंड मुख्यालय में थेरेपी के दौरान फीडबैक व निरीक्षण के लिए जिला स्तर के अधिकारी भी सतत् भ्रमण कर रहे हैं एवं दिव्यांग बच्चे तथा उनके पालकों से फीडबैक प्राप्त कर उन्हें दिव्यांग बच्चों की देखभाल व घर पर भी थेरेपी के लिए सतत प्रोत्साहित कर रहे हैं।
दिव्यांग बच्चे सामान्य बच्चों की तरह ही बहुमूल्य मानवीय संपदा है। दिव्यांग बच्चों को दी जा रही फिजियोथेरेपी और स्पीच थेरेपी ने दिव्यांग बच्चों को एक नया जीवन तथा उनके मन में एक ऐसा नया आत्मविश्वास दिया है जिससे वे शिक्षा के विशिष्ट अधिगम के नए आयामों को सीखने के काबिल बन रहे हैं। विशिष्ट बालकों को समावेशी शिक्षा के द्वारा सामान्य विद्यालय में सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की कोशिश की जाती है। जिसका मुख्य उद्देश्य अधिगम के ही नहीं बल्कि विशिष्ट अधिगम के नए आयाम को खोलना है। जिससे बालकों को समान शिक्षा का अवसर मिले व एक सकारात्मक प्रभावशाली वातावरण उपलब्ध हो।

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