जिला ब्यूरो हृदेश कुमार
अमर सिंह राय शिक्षक समाजसेवी ने बताया कि मध्यक्षेत्र बुंदेलखंड भारत का वक्षस्थल और कलेवर है। यह युद्ध क्षेत्र है, संस्कृति युद्ध ही यहाँ के जीवन अंग रहे हैं, जिसके कारण भारत में बुंदेलखंड की अलग ही पहचान है। यहाँ की वीरभूमि समृद्धशाली और यहां का इतिहास अत्यंत गौरवशाली है। यह क्षेत्र चेदि नाम से चलकर जुझौतिखण्ड और बुन्देखण्ड तक कि यात्रा पूर्ण करता है। खँगार वंश में सबसे उल्लेखनीय चर्चित वीर पुरूष जिसे खंगारों का प्रथम इतिहास पुरूष भी कहा गया है। महाराजा खेतसिंह खंगार क्षत्रिय ने स्वतंत्र हिन्दू राज्य जिझौतिखण्ड की नींव रखी। इनका जन्म गुजरात (सौराष्ट्र) राज्य के जूनागढ़ अधिपति राजा रूढ़ देव के घर 27 दिसम्बर 1140 ई• में हुआ इनकी माता का नाम किशोर कुँवर बाई था। यह अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सामन्त थे। इनका वर्णन 16वी शताब्दी में चंदरबरदाई राव द्वारा लिखित हिंदी महाकाव्य पृथ्वीराज रासो में भी मिलता है इन्होंने उनके सेनापति के तौर पर उनके साथ कई युद्ध लड़े जिनमें से एक युद्ध था
जेजाकभुक्ति का युद्ध सन 1181 ई• में लड़ा गया जिसमे महोबा का युद्द भी शामिल है। यह युद्ध पृथ्वीराज चौहान और खेतसिंह की साझेदारी में लड़ा गया ! इस युद्ध में ऊदल मारे गए और आल्हा रण छोड़ कही चले गये । इस युद्ध में विजय के पश्चात पृथ्वीराज चौहान ने खेतसिंह को इस राज्य का राजा घोषित कर दिया 1181ई• में ही इनका राज्यभिषेक कर दिया और इन्होंने इस राज्य को जिझौतिखण्ड वर्तमान (बुंदेलखंड) नाम दिया और राजधानी गढ़कुंडार में स्थापित की। 1192 ई• में तराईन का पृथ्वीराज चौहान एवं विदेशी आक्रान्ता मोहम्मद ग़ौरी के मध्य लड़ा गया जिसमें दिल्ली मोहम्मद ग़ौरी के अधीन हो गई और खेतसिंह ने जिझौतिखण्ड को स्वतंत्र हिन्दू गणराज्य घोषित कर दिया। इनकी मृत्यु सन 1212 ई• में हो गई थी। अभिलेखों के अनुसार जुझौतिखण्ड (वर्तमान बुंदेखण्ड) में खंगारों का शासनकाल सन 1182-83 से 1347 तक (लगभग 165 वर्ष) रहा। महाराजा खेतसिंह खंगार की चार पीढ़ियों ने यहां शासन किया। जुझौतिखण्ड साम्राज्य के समय का एक दोहा:-
गिर समान गौरव रहे, सिंधु समान स्नेह।
वर समान वैभव रहे, ध्रुव समान धेय्य।।
विजय पराजय न लिखें, यम न पावें पंथ।
जय जय भूमि जुझौति की, होये जूझ के अंत।।
इसके पश्चात यहां किसी खंगार राजा से शासन नही किया कि चूँकि 1325 में दिल्ली की गद्दी पर मोहम्मद बिन तुगलक बैठ गया था, और खंगार वंश के प्रथम राजा महाराजा खेतसिंह खंगार ने इस राज्य को पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद से ही स्वतंत्र हिन्दू गणराज्य घोषित कर दिया था। सन 1347 में मुहम्मद बिन तुगलग ने जुझौतिखण्ड की राजधानी गढ़कुंडार पर हमला कर दिया जिसमे राजा मानसिंह समेत सभी खंगार राजपूत वीरगति प्राप्त कर गए और मानसिंह की पुत्री रानी केसर दे एवं अन्य दासियों ने किले के भीतर मौजूद स्नान कुंड को अग्नि कुंड/जौहर कुंड बना कर स्वयं को अग्नि को सौंप दिया किन्ही पुस्तक से ये दोहा प्राप्त होता है-
जल धर रूठा नित रहे, धर जल उण्डी धार।
क्षत्राणी न्हावे अग्न में, क्षत्रिय न्हावे खंग धार।।
गढ़कुंडार खंगार क्षत्रियों की अंतिम राजधानी थी। जो पहले टीकमगढ़ में तथा वर्तमान में नवीन स्थापित जिला निवाड़ी में आता है। यहाँ मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संस्कृति मंत्रालय के सहयोग से प्रतिवर्ष 27 दिसम्बर से 29 दिसम्बर तक तीन दिवसीय "गढ़कुंडार महोत्सव" का आयोजन किया जाता है, जिसमे विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। यहां पूरे भारत के लगभग हर प्रान्त से खंगार क्षत्रिय बन्धु लाखों की संख्या में आते हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थलों में गढ़कुण्डार दुर्ग, गिद्धवाहनी देवी मंदिर, सिंदूर सागर, खंगारों की कुलदेवी गजानन माता मंदिर, मुड़िया महल, खजुआ बैठक और सिया की रावर आदि प्रसिद्ध हैं। यहां के किले की सबसे अनूठी विशेषता यह है कि यह किला दूर से बिल्कुल स्पष्ट दिखता है लेकिन जैसे जैसे किले के समीप जाते जाएंगे किला आंखों से ओझल होता जाएगा, जब किले के सम्मुख पहुंच जाएंगे तभी यह किला दिखता है। खंगार वंश के शुरू से ही सच्चे मायने में वफादार और देशभक्त रहे हैं। सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई की ओर से युद्धरत खंगार वीर लम्पू सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। महाराजा खेतसिंह ने नारी वर्ग को वीरत्व व सतीत्व के संस्कार दिए। खँगोरिया संस्कार, बीजासेन देवी की स्थापना, रक्कस संस्कार बुन्देखण्ड में आज भी प्रचलित हैं।
- अमर सिंह राय
नौगांव-छतरपुर, मध्यप्रदेश
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